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    नेता जी मुलायम सिंह यादव का सम्पूर्ण राजनीतिक और पारिवारिक जीवन

     

     

    मुलायम सिंह यादव

     

     

    मुलायम सिंह यादव का प्रारम्भिक जीवन

    मुलायम सिंह यादव एक ऐसा नाम जो एक साधारण से परिवार से आते है। जिनके पिता उन्हें पहेलवान बनाना चाहते थे। आइये आज उनके व्यक्तित्व के बारे में कुछ जानते है ।जिन्होंने साइकल से संसद तक का सफ़र तय किया जाहिर सी बात है कि ये आसान सफ़र नहीं रहा होगा पर इसे साकार किया नेता जी ने । उनके उपलब्धियों को देखते हुए तो यही लगता है कि उनका कोई भी एक दिन पिछले दिन की तरह नहीं बीता होगा वो हर दिन आगे बढ़ रहे थे तभी इटावा के छोटे से गाँव सैफई से वो दिल्ली के संसद तक पहुँच गए और आज के समय में शायद ही कोई ऐसा होगा जो उन्हें न जानता हो।

    मुलायम सिंह यादव जी का जन्म 22 नवम्बर 1939 में इटावा जिले के सैफई  गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम मूर्ति देवी और पिता का नाम सुघर सिंह था । जो कि एक किसान थे । ये लोग पाँच भाई बहन थे । नेता जी पाँच  भाई बहेनो में दुसरे  नम्बर पर थे –

    1.रतन सिंह यादव

    2.मुलायम सिंह यादव

    3.अभयराम सिंह यादव

    4.शिवपाल सिंह यादव

    5.कमला सिंह यादव

    व रामगोपाल नेता जी के चचेरे भाई थे ।

    नेता जी के पिता नेता जी को पहलवान बनाना चाहते थे इसलिए उन्हें अपनी निगरानी में नेता जी को पहलवानी के दाव –पेंच सिखाया करते थे । नेता जी एक पहलवान बने और आपने समय के बड़े –बड़े पहलवानो को चित कर देते थे ।

     

    मुलायम सिंह यादव की शिक्षा

    नेता जी ने अपने कर्मक्षेत्र  इटावा के पोस्ट ग्रेजुएट कोलेज से पोलिटिकल साइंस में बी .ए. किया । और आगरा विश्वविद्यालय से राजनीतिविज्ञान में एम.ए. किया । बी .टी. करने के बाद इन्टर कोलेज में वो प्रवक्ता नियुक्त हुए थे । राजनीति से जुड़ने के बाद नेता जी ने अपने शिक्षण कार्य को छोड़ दिया ।

     

    मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक जीवन

    15 साल कि उम्र में जेल गए । उस समय राज्य में सिचाई के बड़े दाम को लेकर लोगो में बहुत गुस्सा था । डॉ राममनोहर लोहिया ने UP में कांग्रेस सरकार के खिलाफ मुहीम छेड़ दी थी। लोहिया के भाषण से प्रभावित होकर नेता जी नहर रेट आन्दोलन में शामिल हो गए। कोंग्रेस ने आन्दोलन को दबाने के लिए लोहिया और उनके और भी नेताओ को गिरफ्तार करा दिया । उसी आंदोलन में नेता जी भी महज 15 वर्ष की आयु में जेल गए । जेल से आने के बाद नेता जी के गाँव के लोगो ने उनका स्वागत किया । नेता जी 19 महीने जेल में रहे । नेता जी ने कोलज में पढ़ाई के दौरान छात्र संघ का चुनाव लड़े और जीत कर अध्यक्ष भी बने, अध्यक्ष रहते हुए ये छात्रो की समस्या दूर करने का प्रयास करते रहते थे और छात्र हित के लिए किसी भी आन्दोलन से नही चूके। इसलिए कॉलेज में इनके दोस्त उन्हें एम्०एल०ए० कहकर बुलाया करते थे । डॉ० राममनोहर लोहिया से प्रभावित होकर ये किसानो, गरीबो के लिए आवाज उठाते रहे।

     

    नेता जी के जीवन का पहला  चुनाव 1967

    इनका राजनीतिक सफर नत्थूसिंह द्वारा शुरु किया गया । नत्थू सिंह ने नेता जी को पहलवानी करते हुए देखा और उनसे प्रभावित होकर उन्होंने 1967 में विधान सभा चुनाव में अपनी सीट जसवंत नगर से चुनाव लड़वाया। जसवंत नगर विधानसभा सिट से नेता जी सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे । फिर  नेता जी चुनाव के प्रचार –प्रसार में लग गये पर नेता जी के पास उस समय संसाधनों का बहुत अभाव था । कुछ दिन साईकिल से गाँव –गाँव जाकर प्रचार किया । फिर नेता जी और उनके दोस्त दर्शन सिंह ने एक वोट एक नोट का नारा दिया । गाँव वालो से इन्होने 1-1 रू चंदा माँगा और उसे ब्याज के साथ लौटने का वादा किया । कुछ पैसे इकठठा हुए तो चुनाव प्रचार के लिए एक पुरानी एम्बेसडर  कार खरीदी ।  कार आने के बाद सवाल ये खड़ा हुआ कि अब कार के लिए पेट्रोल की व्यवस्था कैसे की जाये । फिर गाँव के सभी लोग इकठ्ठा हुए और कहा कि हमारे गाँव से कोई पहेली बार चुनाव लड़ रहा है उसके लिए पैसे की कमी नही होने देना है । गाँव के लोगो ने फैसला लिया की हफ्ते भर में एक दिन एक वक्त खाना खाएँगे उससे जो अनाज बचेगा उसे बेच कर एंबेसडर में तेल भरावायेंगे ।  इससे उनके प्रचार को गति मिल गई । इस चुनाव में नेता जी  ने जीत हासिल किया और पहेली बार 28 वर्ष कि उम्र में विधायक बने ।

     

    1974 का चुनाव

    1986 में डॉ० राममनोहर लोहिया के देहांत के बाद नेता जी ने चौधरी चरण सिंह कि पार्टी भारतीय क्रांति दल से जुड़ गए ।  फिर वे  1974 में भारतीय क्रांती दल की टिकट से दूसरी बार विधायक चुने गए ।

    1974 में नेता जी ने बहुत प्रचार किया उसी समय 1975 में देश में इमरजेंसी लगा दिया गया और नेता जी डेढ़ साल के लिए जेल चले गये जहाँ उनकी पहचान बहुत से बड़े नेताओ से हुई ।

     

    1977 से 1980

    1977 में पहली बार राज्य में जनता पार्टी की सरकार आई जो पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी । इस सरकार में नेता जी को पशुपालन मंत्री बनाया गया ।  जिस पर विपक्ष ने उनपर कटाक्ष भी किया । जनता पार्टी के ख़त्म होने के बाद नेता जी लोक दल पार्टी से जुड़ गए । जनता पार्टी ने 1977 से 1980 तक भारत सरकार का नेतृत्व किया । जनता पार्टी वो पार्टी थी जो इमरजेंसी के बाद 1977 कांग्रेस (इन्दिरा गाँधी ) से मुकाबला करने के लिए बहुत सी छोटी –छोटी पार्टियों को मिलाकर बनाया गया था । परन्तु कुछ आन्तरिक मतभेद के कारण ये पार्टी टूट गई जिसके उपरांत 1980 में  चौधरी चरण सिंह ने अपनी पार्टी “लोक दल” बनाई और इसी पार्टी से नेता जी भी जुड़ गये ।

    1982 से 1985 तक नेता जी एमएलसी भी रहे।

     

    1987 लोक दल पार्टी पर कब्जे की लड़ाई

    29 मई 1987 को चौधरी चरण सिंह की मृत्यु हो गई । चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद लोकदल पार्टी पर कब्जे के लिए लड़ाई छिड़ गई । इस लड़ाई में चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह और मुलायम सिंह भी थे । अजीत सिंह जो उस समय विदेश से अपनी पढ़ाई कर के लौटे थे । अजीत सिंह जो पिता कि जगह चाहते थे पर जनमत संग्रह नेता जी के साथ थी, पर ये पार्टी इनमे से किसीको नही मिली।

     

     1986 से 1988

    नेता जी ने 1986 में चुनाव लड़े और फिर विधायक चुने गये उस समय उनका क्षेत्र मैनपुरी था ।

     

    नेता जी का पहली बार मुख्यमंत्री पद

    (1989 -1991)

    नेता जी जसवंत नगर से ही फिर विधायक चुने गए और  5 दिसंबर 1989 को पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली । ये गठजोड़ की सरकार थी जो ज्यादा दिनों तक नही चली ।

    * जिसके पश्चात् 1991 में कल्याण सिंह उ० प्र ० के मुख्यमंत्री चुने गए ये बहुमत की सरकार थी ।

    * 6 दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था तब नरसिम्हा राव की सरकार ने कल्याण सिंह की सरकार को सस्पेंड कर दिया ।

     

    नेता जी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली 

    *1993  में दुबारा चुनाव हुआ जिसमे नेता जी सातवी बार विधायक चुने गये और दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने । ये चुनाव नेता जी ने अपनी स्वयं कि पार्टी “समाजवादी पार्टी” से लड़ा था । समाज वादी पार्टी के गठन का एलान उन्होंने 1992 में बेगम हजरत महल से किया था । 1996 तक ये सरकार चली।

     

    नेता जी का संसद का पहला सफर

    * 1996 में नेता जी ने मैनपुरी से लोक सभा का चुनाव लड़ा और इस चुनाव में उनकी विजय हुई । इसी दौरान नेता जी माननीय मुलायम सिंह यादव को दिनांक 1 जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक के लिए देश के रक्षा मंत्री के पद का दायित्वा प्रदान किया गया और वो देश के 21 वें रक्षा मंत्री बने। यही वो समय था जब नेता जी प्रधान मंत्री पद के पहले दावेदार भी माने जा रहे थे। परन्तु उनका स्वयं का मानना था कि चार लोगो के कारण प्रधानमंत्री नही बन पाए वो थे: – लालू  प्रसाद यादव , शरद यादव , चंद्रबाबू नायडू और वी० पी० सिंह।

     

    अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिक उपलब्धियाँ

    *1998 से 1999 के लिए वह संभल से लोकसभा के लिए चुने गए सांसद के तौर पर ये उनका दूसरा कार्यकाल था उस समय लोकसभा विघटित कर दी गई।

     

    *1999 से 2004 में तीसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए।

     

    *2003 में बहुत से उतार-चढ़ाव के बाद नेताजी की सरकार बनी और तीसरी बार यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने । यह नवी बार था जब नेता जी विधायक चुने गए थे ।

     

    *2004 में नेताजी ने लोकसभा चुनाव जीता और चौथी बार सांसद बने।

     

    *2007 से 2009 फिर से विधानसभा चुनाव जीत 13वीं बार विधायक बने ।

     

    *नेताजी ने 2009 से  2014 मैं फिर से लोकसभा का चुनाव जीते और छठी बार सांसद बने ।

     

    *2014 में भी नेता जी ने आजमगढ़ और मैनपुरी लोकसभा का चुनाव जीत जीत सातवें बार और आठवीं बार सांसद रहे। 

     

    *2019 में भी नेता जी मैनपुरी से सांसद चुने गए।

     

    मुलायम सिंह यादव की पत्नी

    नेताजी की पहली शादी मालती देवी से हुई थी। जिनका मई 2003 में देहांत हो गया। अखिलेश यादव मालती देवी के ही पुत्र है। बाद में नेता जी ने साधना गुप्ता से विवाह किया और प्रतीक यादव उनके दूसरे पुत्र हैं।

     

    नेताजी मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी और उनकी प्रेम कहानी

    सुनीता एरन जो कि एक जर्नलिस्ट और लेखिका भी है उन्होंने अपनी पुस्तक “अखिलेश यादव की बायोग्राफी बदलाव की लहर” में नेताजी की प्रेम कहानी का जिक्र किया है। नेताजी की साधना गुप्ता से पहले भी मुलाकात हुई थी। पर नेताजी की माता मूर्ती देवी के बीमारी के समय साधना गुप्ता ने उनकी माता का बहुत ही अच्छे से ध्यान रखा। कहा जाता है कि एक बार एक दूसरी नर्स उनकी माता को गलत इंजेक्शन लगाने जा रही थी तभी साधना गुप्ता ने ऐसा करने से उसे रोका। जिसकी वजह से नेताजी की माता की जान बच गई। साधना गुप्ता की इस देखभाल से नेताजी उनसे बहुत प्रभावित हुए और और नेताजी साधना गुप्ता से प्रेम करने लगे।

    केवल अमर सिंह ही इन दोनों के प्रेम के बारे में जानते थे अमर सिंह ने 6 साल तक इस प्रेम कहानी को छुपाए रखा।

    साधना गुप्ता की शादी 1986 में फर्रुखाबाद के चंद्र प्रकाश गुप्ता से हुई थी। शादी के 1 साल बाद ही प्रतीक गुप्ता का जन्म हुआ। शादी के 2 साल बाद ही साधना गुप्ता और उनके पति एक दूसरे से अलग हो गए। इनकी प्रेम कहानी का खुलासा विश्वनाथ चतुर्वेदी के पीआईएल के कारण हुआ था । जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया और उसमें पूछा की 79000 की संपत्ति वाला समाजवादी करोड़ों की संपत्ति का मालिक कैसे बन गया। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सी०बी०आई० को जांच के आदेश दिए। जांच की रिपोर्ट में खुला के मुलायम सिंह यादव की एक बीवी और एक बच्चा और भी है। 2000 में प्रतीक के स्कूल में गार्जियन के तौर पर मुलायम सिंह यादव का नाम था । 2003 में नेता जी ने साधना गुप्ता को अपनी पत्नी का दर्जा दिया और सामाजिक तौर से नेता जी ने 2007 में अपनी आय से अधिक संपत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने स्वीकार किया कि साधना  गुप्ता उनकी पत्नी है और प्रतीक उनके पुत्र हैं।

     

    मुलायम सिंह यादव पर लगे आरोप

     

    अयोध्या गोलीकांड

    30 अक्टूबर 1990 अयोध्या में लाखों कार्य सेवक इकट्ठा हुए थे। जो चाहते थे कि अयोध्या में विवादित स्थान पर मस्जिद को तोड़कर मंदिर का निर्माण हो। उसी दिन पुलिस ने सरकार के आदेश से उन  पर गोली चला दी जिसमें बहुत से लोगों की मौत हुई। उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह जी की सरकार थी।

     

    गेस्ट हाउस कांड

    यह घटना 2 जून 1995 की है। इसकी शुरुआत होती है 1993 से उस समय सपा बसपा की गठबंधन की सरकार बनी थी । पर 1995 में इनके रिश्तो में कुछ कड़वाहट आ गई और उसी समय भाजपा मायावती के लिए सहारा बनी। भाजपा ने तत्कालीन राज्यपाल को पत्र सौंपा और कहा अगर बसपा सरकार बनाने का दावा पेश करती है तो भाजपा का साथ देगी।  इस फैसले के बाद मायावती ने अपने सभी विधायकों की  गेस्ट हाउस में बैठक बुलाई जिसकी भनक सपा को लग गई और सपा कार्यकर्ता की भीड़ ने स्टेट गेस्ट हाउस को चारों तरफ से घेर लिया और गेस्ट हाउस पर हमला कर दिया। फिर जातिवाद के नारे  लगा रहे थे तथा मायावती के लिए आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे थे। मायावती के विधायकों ने मुख्य द्वार को बंद कर दिया। पर भीड़ ने उस दरवाजे को तोड़ दिया दीया। मायावती एक कमरे में छुप गई जहां उनके और भी कुछ विधायक थे। उस समय उस दिन मायावती को बचाने में पुलिस ऑफिसर विजय भूषण और एस एच ओ वीआईपी सुभाष सिंह बघेल की बहुत बड़ी भूमिका रही ।

    इसी प्रकार से नेताजी पर और भी बहुत से आरोप लगते रहे हैं। जैसे वंशवाद तथा परिवारवाद का आरोप, आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप ,  बलात्कार पर आपत्तिजनक टिप्पणी का आरोप  इस प्रकार से नेताजी का जीवन बहुत से आरोपों और विवादों से घिरा रहा है।

                     उपरोक्त कथित विवादों के बावजूद भी माननीय नेता जी श्री मुलायम सिंह यादव एक विनम्र ,जमींन से जुड़े हुए  तथा राजनीति के विद्वान् नेता के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे ।

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