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    महिला सशक्तिकरण / Women Empowerment in Hindi

    महिला सशक्तिकरण

     

     

     

    Mahila sashaktikaran kya hai

    महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य महिलाओं को स्वतंत्र बनाना अर्थात महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना है । उन्हें उनकी योग्यता और क्षमताओं के बारे में बताना तथा उन्हें स्वयं के विकास में सहयोग करना होता है। महिला सशक्तिकरण एक सामाजिक आंदोलन है जो महिलाओं को आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना चाहता है ।

    1. महिला सशक्तिकरण  महिलाओं को समान अधिकार और विकास के अवसर प्रदान करने के लिए मदद करता है। या महिलाओं के लिए संगठन आत्मविश्वास उनके स्वास्थ्य और शिक्षा के समर्थन और न्याय के लिए संघर्ष के साथ जुड़ा होता है।
    2. महिला किसी भी समाज का आधार होती है जो स्वभाव से बहुत ही सरल होती है । औरत अपने माता-पिता के घर से लेकर ससुराल तक अलग-अलग भूमिका का निर्वहन बहुत सरलता से करती है पर देखा जाता है कि आज भी समाज में उनकी भूमिका को नजरअंदाज कर दिया जाता है ।  यहां तक कि वह स्वयं के घर में ही सभी स्तर पर  निर्णय लेने की प्रक्रिया से भी बाहर रखी जाती है।
    3. केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के ज्यादातर देशों की महिलाएं भेदभाव का शिकार होती आई है। वह  वंचित और अधिकार विहीन रहती हैं इसका मुख्य कारण समाज में पितृसत्ता का प्रचलन है । यह एक ऐसी  व्यवस्था है जिसमें पुरुषों को महिलाओं से श्रेष्ट समझा जाता है । जहां संसाधनों पर, निर्णय लेने की प्रक्रिया पर, और विचारधारा पर पुरषों का अधिकार  होता है । संयुक्त राष्ट्र के अनुसार प्रती 3 में से एक महिला हिंसा का शिकार होती है ।  महिलाओं की स्थिति समाज में चिंतन योग्य है जिसे किसी एक दिवस की रुप में मना कर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । बल्की इसको एक अभियान के रूप में लेकर उनकी  स्थिति को समझ कर इसकी समस्यों को अध्यन करते हुए इसका समाधान कर के पुरुषों की समान करना चाहिए ।   हम महिलाओं की स्थिति को विस्तार से समझेंग

     

    महिलाओ कि स्थति को पूर्व से अबतक जानते है

     

     

    यदि हम महिलाओं की स्थिति को पूर्व समय से भारत के परिपेक्ष में देखें तो हम बात करते हैं वैदिक समय से . जब हम वैदिक काल के समाज में महिलाओं की स्थिति पर  विचार करते हैं तो हमें यह ज्ञात होता है कि उस समय महिलाओं की स्थिति आधुनिक समय से कहीं ज्यादा बेहतर थी। वैदिक काल में महिलाओ कि स्थति निम्नलिखित है ;

    1. वैदिक काल के समय समाज में दहेज प्रथा जैसी कुरीति का कहीं भी जिक्र नहीं मिलता । बल्कि वैदिक काल में विवाह को एक संस्कार या धार्मिक कार्य माना जाता था । जिसमें विवाह में कन्यादान की  अवधारणा थी ।  जिसमें वधू पक्ष दाता तथा वर पक्ष याचिकाकर्ता होता था। और हमें यह भली-भांति ज्ञात है कि दाता सदैव याचिकाकर्ता से बड़ा होता है।
    2. वैदिक काल में अर्धनारीश्वर की संकल्पना भी देखने को मिलती है जिसमें पुरुष तथा स्त्री को समान माना गया है तथा एक दूसरे का पूरक बताया गया है ना कि पुरुष को स्त्री से बड़ा या छोटा दिखाया गया है ।
    3. वैदिक काल में बाल विवाह ,पर्दा प्रथा, सती प्रथा जैसी कुरीतियों का कहीं भी वर्णन नहीं था । उस काल में स्त्रियां पुरुषों के साथ यज्ञ में भी भाग लेती थी ।
    4. वैदिक काल में विवाह की एक और प्रथा दिखाई देती है । जिसको कहते हैं स्वयंवर अर्थात जिसमें स्त्री अपने वर का चुनाव स्वयं  करती है। अर्थात स्त्रियों को अपना जीवनसाथी चुनने  का भी अधिकार प्रदान था।
    5. वैदिक काल में स्त्रियां धार्मिक कार्य के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती थी यज्ञ में शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ को स्वर्ग के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है । यदि जिसे स्वर्ग की प्राप्ति करना हो तो उसे यज्ञ भी करना होता था और यज्ञ बिना अपने पत्नी के पूर्ण नहीं माना जाता था ।
    6. .उस समय समाज में स्त्रियों को पुरषों के समान आधिकार था । स्त्रियां भी अपने शैक्षणिक अनुशासन के अनुसार ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए शिक्षा ग्रहण करती थी । । ईसा से 500 साल पूर्व व्याकरण पाणनि द्वारा पता चला है नारी वेद अध्ययन भी करती थी तथा स्त्रोतों की रचना भी करती थी । जो ब्रह्मवादिनी कहीं जाती थी । इसमें रमशा ,लोपामुद्रा ,घोषा,इंद्राणी नाम प्रसिद्ध है।
    7. पतंजलि में तो नारी के लिए शाक्तिकीशब्द का प्रयोग किया गया है अर्थात भाला धारण करने वाली इससे प्रतीत होता है ,कि नारी सैनिक शिक्षा भी लिया करती है  थी ।और पुरुषों की भांति अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाया करती थी।
    8. वैदिक काल के शास्त्रों में स्त्री को बहुत ही महत्वपूर्ण तथा उच्च स्थान प्रदान है वैदिक काल में महिला की या फिर स्त्रियों की गरिमा की रक्षा के लिए कई युद्धों का भी वर्णन मिलता है ।  देखा जाता है की वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति बहुत बेहतर थी। धीरे-धीरे इसके बाद के समय में इनमें बहुत सारी कुरीतियां समावेशित होने लगी।

     

    वैदिक काल के बाद का समय

     

    वैदिक काल के बाद के समय में महिलाओ कि स्थति निम्नलिखित है ;

    1. वैदिक काल के बाद से कहीं ना कहीं यह देखने को मिलता है जब महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई। इसी काल में सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद भी लिखे गये  । इस समय सामाजिक व्यवस्था रूढ़िवादी होती गई तथा सामाज में  बुराइयां हावी होने लगी।
    2. इस समय पुरुषवादी व्यवस्था का जोर बढ़ता गया और महिलाओं के ऊपर बंधन धीरे-धीरे कठोर होते गए तथा उनका स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त होता गया। नारी व्यक्ति के स्थान पर वस्तु का रूप धारण करती  गई। इसी समय समाज में बाल विवाह, बहु पत्नी प्रथा, वेश्यावृत्ति प्रथा, देवदासी, भ्रूण हत्या, पर्दा प्रथा शामिल है। उत्तर काल के ही आखिर में सती प्रथा का भी प्रचलन समाज में आ गया था ।
    3. इसी काल में पति परमेश्वर तथा पत्नी के सेविका रूप कि संकल्पना भी अस्तित्व में आयी  । वैदिकोत्तरकाल की परंपराएं मानसिक अवचेतन पर इस रूप में रच बस गई है कि स्त्री का उससे बाहर आना बहुत ही दुष्कर हो गया । उसी समय स्त्रियों के लिए जिस तरह की रचनाएं हुई जिस तरह के काव्य रचे गए उसमें स्त्री के लिए सहनशीलता ,लज्जा ,कोमलता ,तथा पुरषों पर स्त्रिओ की निर्भरता का स्वभाव बताएं गया
    4. उनके कार्य में पति की सेवा करना उनके घर वालों की सेवा करना बच्चों का पालन पोषण करना औरत का यही दायित्व होता है ।
    5. औरत को मोह माया बताया गया ,नर्क का द्वार बताए गया , प्रेम में स्त्री का पहल करना चरित्र हीनता बताया गया । इस समय धनी राजघरानों में बहुविवाह भी प्रचलित हो गया । एक से अधिक पुरुष के साथ एक ही स्त्री के विवाह की प्रथा का उल्लेख अथर्ववेद से मिलता है। परन्तु विधवा विवाह का कही  भी उल्लेख नही मिलता है ।
    6. भारत के कुछ महत्वपूर्ण महाकव्य है जैसे -रामायण और महाभारत ।  रामायण में भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने लंका से सीता जी के वापस आने के पश्चात सीता जी को भी अपनी चरित्र कि पवित्रता कि परीक्षा देनो को कहा । राम जी ने सीता जी को गर्भावस्था में उनका परित्याग करते हुए संकोच नहीं किया । महाभारत में भी द्रोपती का विवाह पांच पांडव से हुआ तथा द्रोपति का जुए में उनके पति युधिष्ठिर के द्वारा हारे जाने का अर्थ यही है कि उस समय भी स्त्रियों को एक वस्तु की भांति समझा जाता था ।  उस समय पुरुष का बहुविवाह प्रचलन में था ।
    7. वैदिककाल तथा वैदिकोत्तरकाल में स्त्रियों कि जो स्थति थी वह अधिक दिनों तक स्थिर नही रहे पाई  । बालविवाह जैसी कुप्रथा ने बालिकाओ की शिक्षा के स्तर को बाहुत क्षति पहुचाया । स्त्रियों के पास शिक्षा न होने के कारण उनके पास स्वयं के लिए सही –गलत का विवेक भी नही था जिस कारण पित्त्रस्त्तात्म्क समाज उनपर हावी होता गया  । स्मरति युग में स्त्रियों का सम्मान माता के रूप में होता था पत्नी के रूप में नही । स्त्रियों का परम कर्तव्य पति की सेवा होगी ।

    भारत में ऐसी बहुत सी समस्याए है जिस कारण महिला  सशक्तिकरण कि आवश्यकता पड़ी जो इस प्रकार है …..

     

    महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर होने वाला भेदभाव –

     

     

    भारत में अभी भी महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है। पितृसत्तातमक समाज होने के कारण महिलाओ को पुरषों के बराबर आधिकार प्राप्त नही है ।  कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की भी इजाजत नही होती है। परिवार से जुड़े फैसले लेने की भी आजादी नही होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कम ही माना जाता है।

    महिलाओं के साथ लैंगिक स्तर पर होने वाला भेदभाव एक गंभीर समस्या है जो समाज में मौजूद है। यह विभिन्न रूपों में हो सकता है, जैसे कि वेतन में असमानता , शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल ,पदों के  वितरण में भेदभाव, समाज में बालिकाओ के लिए नकारात्मक दृष्टिकोण आदि।

    महिलाओ की सुरक्षा

     

     

    महिलायों की सुरक्षा अपने आप में एक ऐसा विषय है जिसपर विशेष ध्यान देने कि आवश्यकता है  । पिछले कुछ सालों में महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचारों को देखकर हम यह तो बिलकुल नहीं कह सकते की हमारे देश में महिला पूर्णत: सुरक्षित है। महिलाएं अपने आपको असुरक्षित महसूस करती है खास तौर पर अगर उन्हें अकेले बाहर जाना हो तो। यह वाकई हमारे लिए शर्मनाक है की हमारे देश में महिलाओं को भय में जीना पड़ रहा है। हर परिवार के लिए उनकी महिला सदस्यों की सुरक्षा चिंता का मुद्दा बन चुका है।

    महिलाएं देश की लगभग आधी जनसँख्या है जो शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक रूप से पीड़ित है। यह देश के विकास तथा तरक़्क़ी में बाधा बन रहा हैमहिलाये बाहर काम करने के साथ उपेक्षित होने का भय छेड़छाड़ से लेकर दुष्कर्म यौन उत्पीड़न के भय के साथ साथ जीवन बिताती है ।

     

    देश में हर दिन महिलाओं के साथ अनेक विवादित मामले होते हैं । महिलाओं के लिए सुरक्षित रहना उनका अधिकार है परन्तु देश का संविधान तो महिलाओ को यह आधिकार देता है पर समाज आज भी उन्हें यह आधिकार नही दे पाया है । महिलाये स्वयं के घर में भी सुरक्षित नही है यदि बलात्कार का प्रतिशत देखे तो यह पता चलता है की 80 प्रतिशत  बलात्कार उनके घर में ही उनके सगे-सम्बन्धियों द्वारा होता है । सरकार के द्वारा विभिन्न कदम उठाए जाने के बावजूद, अभी भी बहुत से क्षेत्र हैं जहाँ महिलाओ  के लिए कार्य करना है ।

    भारत में आज भी महिलाओ कि सुरक्षा कि स्थति बहुत ही दयनीय है । जहां एक व्यक्ति को स्वतंत्र जीने का अधिकार होता है वहां महिलाएं स्वतंत्र रूप से बाहर आजाद घूम तक नहीं सकती ।  सोचने वाली बात है कि जहां एक पुरुष दिन हो या रात कभी भी वह कहीं भी अकेले घूम सकता है परंतु एक महिला अकेले तो क्या महिला साथियों के साथ भी बाहर घूमने में स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करती  हैं ।  यह स्थिति छोटे राज्यों में अधिक देखने को मिलती  हैं । यह सोचने की बात है कि इस प्रकार की  सोच रखने वाले पुरुष महिलाओं के लिए जानवर से भी बदत्तर है । जिसके कारण महिलाएं अपने रोजमर्रा के बाहरी कार्य को भी सहजता से नहीं कर सकती । बालिका स्कूल जाने में असहज महसूस करती हैं जहां पर इस प्रकार के नौजवान बोली आवाज करते हैं तथा गंदी नजरों से उन्हें देखते हैं या उनका पीछा करते हैं।   इसी कारण महिलाएं रात को बाहर नौकरी भी नहीं कर सकती     इस प्रकार की स्थितियां महिलाओं को पुरुषों के बराबर लाने में बाधा बनी हुई है ।

     

    पारिवारिक उत्तरदायित्व

     

     

    पारिवारिक जिम्मेदारियां महिला सशक्तिकरण के लिए एक समस्या हैं । हमारा समाज ऐसा है जहां यह माना जाता है कि घर की संपूर्ण जिम्मेदारियां महिलाओं की ही होती है। अपने माता-पिता के घर में भी एक बालिका पर एक लड़की पर अपने घर की जिम्मेदारी होती है । अपने घर को साफ रखना , खाना पकाना , खेती का काम तथा विवाह के उपरांत उनकी जिम्मेदारियां और बढ़ जाती है ।  यदि पत्नी नौकरी भी करती है तो उसे घर को संभालना होता है घर के सभी काम करने होते हैं खाना पकाना ,पति की सेवा तथा बच्चों का पालन पोषण महिला की जिम्मेदारी मानी जाती है । जहां एक पुरुष केवल अपनी एक जिम्मेदारी को निभाता है ।  वही महिलाओं को नौकरी करते हुए कई जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ता है परिणामतः महिला दोनों भूमिकाओं को कुशलता से प्रबंधित न कर पाने के कारण तनाव की स्थिति में आ जाती है और अधिकतर या देखने को मिलता है कि महिला अपनी नौकरी छोड़ देती है। जिसके उपरांत आर्थिक रूप से महिला को पुरुष पर निर्भर रहेना पड़ता है ।

     

     

    सामाजिक सांस्कृतिक तथा वैचारिक पिछड़ापन

     

     

    भारतीय समाज में महिलाओं को लेकर अलग-अलग समाज तथा संस्कृति में अलग-अलग विचार है । जो कि बहुत ही पिछड़े हुए हैं । जैसे महिलाओं को घर से बाहर ना निकलने देना , महिलाओं के लिए शिक्षा आवश्यक नहीं है इस प्रकार के विचार , महिलाओं का पर्दा करना बाहर ना निकालना , महिलाओं का घर से बाहर निकल कर नौकरी ना करने देना,  बहुत से समाज में यहां तक माना जाता है कि महिलाओं को केवल घर पर रहकर घर को संभालना चाहिए तथा आर्थिक जिम्मेदारी पुरुष की होती है।

    महिला साक्षरता दर निम्न होना

     

     

     

     

    भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिला साक्षरता दर निम्न है । अलग अलग राज्य में यह दर अलग-अलग है। महिलाओं के साक्षर ना होने के कारण वे अपने हितों को ठीक से नहीं समझ पाती । भारत सरकार द्वारा उनके हित में जो भी योजनाएं चल रहे हैं उन्हें उसकी भी ज्ञान  नहीं हो पाता  । महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के विरुद्ध उन्हें न्याय किस प्रकार प्राप्त होगा उन्हें इसकी भी जानकारी नहीं है। अर्थात किसी महिला के साथ कोई हिंसा हो रहा है जैसे -यौन उत्पीड़न हो रहा है , घरेलु हिंसा , मानसिक उत्पीडन हो उसके लिए न्याय किस प्रकार प्राप्त होगा महिलाओं को इसकी भी जानकारी नहीं हो पाती । महिला साक्षरता दर निम्न होना महिला सशक्तिकरण के लिए एक बड़ी बाधा है।

     अन्य समस्याए 

    भारत में महिलाओं में बड़े पैमाने पर भिन्नता होने के कारण उनके बारे में व्यापक तौर पर कोई अनुमान लगाना निश्चित तौर पर कठिन कार्य है। उनका संबंध अलग-अलग वर्गो जातियों धर्मों समुदायों से हैं। इसके बावजूद कहा जा सकता है कि ज्यादातर महिलाएं पितृसत्तात्मक ढांचे और विचारधाराओं के कारण तकलीफ उठाती हैं उन्हें महिला पुरुष समानता और पराधीनता का सामना करना पड़ता है।जिस कारण महिलाएं सामाजिक और मानव विकास के समस्त सोच में पुरुषों से पिछड़ जाती  हैं ।

    महिलाओं के लिए भारत में दुनिया का सबसे प्रतिकूल महिला पुरुष अनुपात है। महिलाओं के लिए जीवनप्रत्याशा पुरुषों से कम है । महिलाओं के स्वास्थ्य पोषण और शिक्षा स्तर पुरुषों की तुलना में बहुत कम है। महिलाएं अल्प कौशल और कम पारिश्रमिक वाली नौकरियां तक ही सीमित रहती है उन्हें पुरुषों की तुलना में परिश्रमिक और वेतन कम  मिलते हैं । संपत्ति तथा उत्पादन के संसाधनों पर पुरुषो का नियंत्रण होता है।

    राजनीतिक एवं सामाजिक निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी कम है। संसद में महिलाओं की भागीदारी 10% से ज्यादा नहीं रही । । उनके जीवन को प्रभावित करने वाले सामाजिक आर्थिक कानूनी राजनीतिक नियमों के रूप में उनकी राय नहीं ली जाती उन्हें अधीन रखा जाता है सभी जगहों पर तो नहीं कहा जा सकता परन्तु अधिकाश जगहों पर यह ही देखने को मिलता है ।

    इन सभी समस्याओं का निवारण इस प्रकार हो सकता है जो कि निम्न है…..

     

    1. न्याय व्यवस्था की जागरूकता महिलाओं में बढ़ाना होगा । जिससे महिलाओं को यह जानकारी हो की उनके साथ होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा के लिए न्याय व्यवस्था में उनके लिए उचित न्याय प्राप्त है। तथा न्याय व्यवस्था में कुछ महिला अपराधों के लिए तो कठोर कानून होना चाहिए ।  जैसे कि -बलात्कार ,घरेलू हिंसा , दहेज ना मिलने पर पत्नी की हत्या इस प्रकार के अपराधों के लिए कठोर कानून होना चाहिए जिससे कि अपराधियों के मन में इसके लिए भये पैदा हो तथा इस प्रकार की हिंसा पर रोक लग सके ।
    2. महिलाओं के साथ लैंगिक स्तर पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करना होगा तथा समाज में यह जागरूकता फैलाने होगी की  समाज के लिए पुरुष जितना महत्वपूर्ण है महिलाओं का भी महत्व उतना ही है । क्योंकि किसी भी समाज का निर्माण केवल स्त्री या केवल पुरुष से नहीं हो सकता किसी भी समाज के लिए स्त्री पुरुष दोनों की ही समान भूमिका होती है ।  इसलिए महिलाओं को भी उतना ही अधिकार प्राप्त होना चाहिए जितना कि पुरुषों को है।
    3. महिलाएं, जो पुरुषों की तरह ही प्रतिभाशाली हैं, परन्तु गैर-उत्पादक घरेलू कार्यो में लिप्त होने के कारण अपने कौशल को बर्बाद कर रही हैं । उन्हें सशक्त होना चाहिए और उन्हें अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को आकार देने का अधिकार होना चाहिए । ऐसा नही है कि उन्हें घरेलु कामो को नही करना चाहिए परन्तु उस कार्य में अपने दिन के २४ घंटे देने के बाद भी वे आर्थिक रूप से किसी और पर निर्भर रहेती है जिस कारण महिलाओं के निर्णय लेने की क्षमता में भी कमी आती है । जब तक एक इंसान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होता तब तक उसके निर्णय में भी आत्मनिर्भरता नहीं आ सकती  है
    4. महिलाओं की स्थिति में बदलाव आए हैं परंतु वह बदलाव ऊंट के मुंह में जीरे के समान है जो बदलाव है वह महिलाओं का पूरा हक नहीं है। महिलाओं के लिए कानून भी है परंतु वह कानून भी उन महिलाओं के लिए है जो आर्थिक रूप से सशक्त हैं तथा जो बहादुर हैं वही उसका प्रयोग कर पाती । इस कारण महिलाओं को आर्थिक तथा शैक्षणिक रूप से सशक्त बनाने के लिए पहले शिक्षा को महिलाओं तक पहुंचाना होगा जिसमें महिलाओं के घरों के पास विद्यालय होने चाहिए  । यदि वह कोई तकनीकी या फिर कोई उच्च स्तर की डिग्री चाहती है तो वह उनके शहर में या गांव में लब्ध होना चाहिए । जिससे कि उन्हें अपने घर में  किसी प्रकार की रुकावट का सामना ना करना पड़े ।  महिलाओं के लिए शिक्षा सुगम होनी चाहिए । शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा महिला सशक्तिकरण को तेज गति मिल सकती है।
    5. महिलाओं के लिए प्रत्येक जिले में एक ऐसा मुफ्त संस्थान होना चाहिए जिसमें महिलाओं के लिए  भोजन तथा आवास की व्यवस्था हो । देखा जाता है कि प्रत्येक महिला अपने खिलाफ हो रहे हिंसा का या फिर ऐसे कार्य जो उन्हें स्वयं के लिए हितकर नही लगते फिर भी वह सहने को विवश होती हैं ।  क्योंकि वह स्वयं को बाहरी दुनिया में भी सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं , महिलाएं इस विवशता के कारण अपने साथ हो रहे अत्याचारों को सहन करने को मजबूर हो जाती हैं कि यदि घर छोड़कर जाएंगे भी तो कहा जाएंगे । महिलाए  स्वयं के  आश्रय तथा आर्थिक तंगी के कारण यह सब सहन करने को मजबूर हो जाती ।  इस कारण सरकार को ऐसा आवास अवश्य ही बनाना चाहिए जिसमें उनके रहने खाने की व्यवस्था के साथ-साथ कुछ प्रशिक्षण की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
    6. मेरा मानना है कि किसी एक दिन महिला दिवस मनाने से बेहतर है कि महिलाओं के लिए कुछ ऐसा कार्य किया जाए जो एक क्रांति की तरह महिलाओं की स्थिति को बदल दे तथा महिलाओं को पुरुषों के समक्ष ला खड़ा करें क्योंकि महिला पुरुषों के समान ही है । बिना किसी एक वर्ग के केवल एक वर्ग से समाज का निर्माण नहीं हो सकता ।  समाज के निर्माण के लिए दोनों ही वर्गों की आवश्यकता होती है । इसलिए महिला दोयम दर्जे की ना होकर महिला तथा पुरुष समान है। इसके लिए मुझे एक कविता याद आती है जो इस प्रकार है……

    औरत

    बाकी दिन मोहताज बना कर , एक  दिन खास बना कर क्या फायदा।           

    उसके सभी रंग छीन कर किसी एक किरदार में बांध कर क्या फायदा ।

    जिस घर की वो सदस्य थी जिस घर में उसका लड़कपन जवानी बीती

    उसी घर जाने के लिए किसी और के हां का इंतजार करना पड़े तो क्या फायदा ।

     

    कवियों को भी तो देखो उन्हें पायल काजल, बिंदिया, हुस्न , यौवन तक ही बांध दिया

     उनके हुनर को भुला कर क्या फायदा ।

     

    कहीं उनकी इज्जत तार-तार हो रही तो कहीं वेश्यावृत्ति में धकेला जा रहा

     तो कहीं घरेलू हिंसा का शिकार हो रही  केवल महिला सशक्तिकरण का नारा लगाकर क्या फायदाI

    बाकी दिन मोहताज बनाकर एक  दिन खास बनाकर क्या फायदा  

      written by Chandana Singh

     

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